लेखनी कहानी -09-Jun-2023 गांव का दृश्य
मुहब्बत की दुकान में नफरती सामान धड़ल्ले से बिक रहा है
मेरे गांव की आबोहवा में राजनीति का मीठा जहर घुल रहा है
भाईचारा न जाने कहां दफन हो गया, संवेदनाऐं मर सी गई हैं
"पराली" की तरह से रह रहकर ये दिल न जाने क्यों जल रहा है
गांव की मिट्टी में बसी वो सौंधी सौंधी महक कहीं गायब हो गई
दिलों में बसी हुई सड़ांध का रावण सुगंध के हरण को मचल रहा है
अभावों में पलती हुई मानवता किसी हवेली की दासी बन गई है
आंखों से झलकता उच्छ्रंखल भाव हमारी संस्कृति को खल रहा है
ममत्व, प्रेम और वात्सल्य अब तो मृग मरीचिका से लगने लगे हैं
शहरी सभ्यता का भूत अब गांवों में रहकर खुल के फल रहा है
श्री हरि
9.6.2023
वानी
24-Jun-2023 07:30 AM
Nice
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Gunjan Kamal
20-Jun-2023 07:28 AM
👏👌
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ऋषभ दिव्येन्द्र
09-Jun-2023 08:22 PM
लाजवाब लिखा है आपने 👌👌
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Hari Shanker Goyal "Hari"
09-Jun-2023 11:05 PM
बहुत बहुत आभार आपका 💐💐🙏🙏
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